यूँ ही तो है तू मुसाफ़िर खड़ा, ये ही तो है रास्ता
मुश्किल बड़ी हो या ना हो अगर, यूँ ही लिखी दास्ताँ
यूँ ही नहीं है तू लापता, क्या था जो तूने कहा?
पूछे कहाँ है तेरा कारवाँ, है क्या कोई यहाँ?
सोचे क्यूँ ज़िंदा है? क्या है ये कोई सज़ा?
यूँ ही है मुश्किल, है ये समाँ, ये जहाँ
यूँ ही तो है तू मुसाफ़िर खड़ा, यूँ ही मैं तेरे बिना
है क्या ये जो ना भरे मन तेरा? तूने क्या सोचा बड़ा?
यूँ ही ना आसाँ है ये ज़िंदगी, यूँ ही ना मैं हूँ यहाँ
मुश्किल है ये दोस्ती तेरी, क्यूँ है तू खोया हुआ?
क्यूँ सोचता है तू? जी ले ज़रा लापरवाह
क्यूँ तेरे दिल ने ना माना है मेरा कहा?
मुश्किल है जो है ये ज़िद्दीपना तेरा
थम जा ज़रा एक पल, दिल खोल अपना
ये ही तो है तू मुसाफ़िर खड़ा, किसका तुझे इंतज़ार
पल-दो-पल की है राह तेरी, क्यूँ ना रहे तू लापरवाह?